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कविता

बहुत दिनान के अवधि-आस-पास परे

घनानंद


बहुत दिनान के अवधि-आस-पास परे,
             खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान कौ।
कहि कहि आवन सँदेसो मनभावन को,
            गहि गहि राखत हैं दै दै सनमान कौ।
झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास ह्वै कै,
           अब न घिरत घनआनंद निदान कौ।
अधर लगै हैं आनि करि कै पयान प्रान,
           चाहत चलन ये सँदेसौ लै सुजान कौ।।


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